यूँ तो सच की विजय का नाम है दशहरा
और न्याय की पहल का नाम है दशहरा
आजकल राम तो कहीं नजर नहीं आते
गली, मुहल्लों में रावण आम है दशहरा
तरकश के तीर प्रतीक्षा कर कर के बेहाल हैं
राम के आगमन को तरस रहा है दशहरा
पहले तो एक अहिल्या ही बनी थी शिला
अनगिनित ऐसी शिलाएं लिए बैठा है दशहरा
मूल्यों में गिरावट की बात कौन भला किस से करे
हर दल में अपसंस्कृति पनपते देख रहा है दशहरा
भूल जाओ त्रेता युग के राम लक्ष्मण को
जगाओ अंतर के राम कह रहा है दशहरा