BAL KAVI BAIRAAGEE HONORED IN MUMBAI




बाल कवि बैरागी हिंदी के उन चन्द  कवियों में से हैं जो सौदेश्य लेखन से माँ भारती और मन सरस्वती की सेवा करते आ रहे हैं। जिस मंच पर बैरागी मौजूद हों वहां उनकी उपस्थिति मात्र से गरिमा आ जाती है। जब काव्य पाठ करते हैं तो श्रोताओं के खून में उबाल सा आने लगता है। इंदिरा गाँधी की सरकार में रहते हुए   भी आपात काल के खिलाफ कविता लिखी, डंके की चोट पर सुनाई  भी।  82 साल के होने को आये पर आज भी  वाणी में ओज ऐसा कि नौजवानों को मात करता नज़र आये।

बचपन मध्य प्रदेश के ऐसे इंटीरियर  गाँव में बीता जहाँ से करीब का स्कूल  20 कि मी पर, पिता अपाहिज, घर में खाने का कोई ठिकाना नहीं, भिक्षा यापन से गुजारा चलता। इस प्रष्ठभूमि से निकल कर राष्ट्र का दुलारा कवि बन जाना , संसद, विधान सभा की सदस्यता, मंत्री पद अंदाजा करना कठिन है की इस सफ़र में कितना संघर्ष रहा होगा। 

बाल कवि बैरागी की कविताएँ सुने एक अरसा हो गया था, मुझे याद पड़ता है कि आखिरी बार मुरादाबाद में हास परिहास की ओर से आयोजित कवि सम्मेलन में सन 77 में सुना था। कल मुंबई के साहित्य अनुरागियों की और से उनका भवन के अँधेरी केम्पस में स्थित एस पी जैन आडिटोरियम में  सम्मान किया गया। इस अवसर पर मुंबई के लगभग सभी नामी गिरामी साहित्यकार मौजूद थे उन्होंने कुछ मन की कही और कुछ कविताएँ भी सुनाईं।

अपने उद्बोधन में बैरागी ने कहा कि जिस देश के पास वेद, उपनिषद्, गीता, आगम, मानस, महाभारत, कालिदास, तुलसी, सूर, कबीर, मीरा, रहीम, रसखान, गालिब, निराला, दिनकर, बच्चन, सुमन, भवानी भाई, महादेवी और सुब्रम्हण्यम् भारती जैसे-लौकिक-अलौकिक विश्वश्रुत वंदनीय नक्षत्र हों उस देश में श्रेष्ठ से भी ऊपर सर्वश्रेष्ट लेखन की अपेक्षा आज कोई करे तो मुझ जैसे व्यक्ति गहरे सोच में डूब जाता है। श्रेष्ठ और सर्वश्रेष्ठ की आखिर हमारी अपनी कसौटी क्या है ? उनका मानना है कि अपना देश  मूलतः श्रुति का देश है। प्राणपूर्ण सम्प्रेषित काव्य को लोग सुनकर सहेजते हैं। सृजन यहाँ पहले श्रुत हुआ। लेखन, लेप और लिपि उसे बाद में मिली। श्रुति ने उसे सदियों तक कंठ में रखा। कर्ण (कान) और कंठ के बीच में होती है वाचा-वाणी-वाग्मिता। अक्षर की पदयात्रा शब्द पर पहला पड़ाव पाती है। अक्षर अनादि है। शब्द ब्रह्म। यहाँ अनादि और ब्रह्म मिलकर ही ‘नारद ब्रह्म’ का रूप लेते हैं। सारस्वत सृजन इसी में गूंजता है। एक और खास बात यह कि  स्मारक कभी आलोचकों के नहीं बने , वो हमेशा सृजनशील लोगों के ही बनते हैं।

मंदसौर में बाल कवि का विवाह हुआ, ससुर वहां पर समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के हाकर हुआ करते थे। जीवन संगनि हर दुःख हर सुख में साथ रहीं , पिछले ही वर्ष उनका निधन हुआ। बाल कवि बताते  हैं कि उन्होंने पत्नी के जाने का शोक नहीं मनाया। हो सकता है की इसमें सचाई हो लेकिन कहीं न कहीं उनके व्यक्तित्व का एक टुकडा अलग हुआ है जो दिखता है।

कार्यक्रम में बाल कवि जी ने 3 घंटे निर्बाध रचना पाठ किया फिर भी ऐसा लगा जैसे यह बहुत कम रह गया हो , बस यही उनके बारे में एक बड़ा सच भी है।






उनको एक मलाल बहुत बड़ा है की आज तक अपने देश के सैनिकों में ओज और जोश का संचार करने वाला कोई गीत नहीं लिखा गया है , हम भगवान् से प्रार्थना  करते हैं कि यह काम बाल कवि जी की लेखनी से ही निकले। 


कार्यक्रम में उन्होंने ग़ज़ल, मालवी में विदेशी  कवियों की कविताओं के अनुवाद से लेकर  ओजपूर्ण कवितायेँ तक सुनाई। मुझे  उनके सुनाए हुए कुछ  छन्द आज के माहौल में बहुत प्रासंगिक लगे, वो आपकी नजर हैं ;


                                                     है अमावस से लड़ाई, 
                        युद्ध है अँधियार से
                        इस लड़ाई को लड़ें 
                         अब कौन से हथियार से ?                                          
                           एक नन्हा दीप बोला-
                       ‘‘ मैं उपस्थित हूँ यहा                                         
                          रोशनी की खोज में आप जाते हैं कहाँ ? 
                        आपके परिवार में नाम मेरा जोड़ दें
                        (बस) आप खुद अँधियार से यारी निभाना छोड़ दें।’’

                        
                      आज मैंने सूर्य से बस ज़रा सा यूँ कहा

‘‘आपके साम्राज्य में इतना अँधेरा क्यूँ रहा ?’’
तमतमा कर वह दहाड़ा—‘‘मैं अकेला क्या करूँ ?
तुम निकम्मों के लिए मैं ही भला कब तक मरूँ ?
आकाश की आराधना के चक्करों में मत पड़ो
संग्राम यह घनघोर है, कुछ मैं लड़ूँ कुछ तुम लड़ो।’’


हैं करोड़ों सूर्य लेकिन सूर्य हैं बस नाम के
जो न दें हमको उजाला वे भला किस काम के ?
जो रात भर लड़ता रहे उस दीप को दीजे दुआ
सूर्य से वह श्रेष्ठ है तुच्छ है तो क्या हुआ ?
वक्त आने पर मिला ले हाथ जो अँधियारे से
सम्बन्ध उनका कुछ नहीं है सूर्य के परिवार से।।


यह घड़ी बिल्कुल नहीं है शांति और संतोष की
‘सूर्यनिष्ठा’ सम्पदा होगी गगन के कोष की
यह धरा का मामला है घोर काली रात है
कौन जिम्मेदार है यह सभी को ज्ञात है
रोशनी की खोज में किस सूर्य के घर जाओगे
‘दीपनिष्ठा’ को जगाओ अन्यथा मर जाओगे।।

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