Ghazal : आप से एक बार मिल कर

आप से एक बार मिल कर दिल मेरा जाता  गया 
रोकना चाहा बहुत  पर हाथ से जाता रहा .

आपका आँचल हवा में सिम्त लहराता रहा,
एक झोका खुशबुओं का इस तरफ आता रहा .

 यूं तो मुद्दत हो चुकी है आपसे मिल कर हमें 
आप का एहसास फिर भी दिल को बहलाता रहा .

मैं ज़माने से लड़ा हूँ जिसकी मुहब्बत के लिए 
वेबफा वो दूर से ही दिल को  तरसाता  रहा  .

क्या मिला है मुझ को अपनी इस वफ़ा का सिला 
गैर की बाहों में रह कर मुझ को तडफाता रहा 
                              


 कॉपी राईट                                                   ----- प्रदीप गुप्ता 


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