Happy Deepavali




लाख पहरे हैं उजाले पर बिठाये 
और  अँधेरे मस्त  हैं आकाश में, 
एक  नन्हे दीप की इतनी  व्यथा है .

पी  तिमिर के रोष को रात भर 
स्नेह के बिन तिल तिल  जलता रहा  है, 
एक अकिंचन  दीप की इतनी कथा है .

कौन सूरज की तपिश में घूम कर 
दीप के बलिदान को समझा सके 
यह तो अपनी जान  पर खेला किया है, 

रास्तों को अँधेरे में जरा  रोशन करे
और भटके को तनिक  आराम दे 
इस लिए यह दीप जलता ही रहा है .

दीप की कोशिश रही हर रात को 
खुद जले और जग रोशन करे 
फिर भी अपनों ने इसे इतना  ठगा है 

दीप आखिर दीप है 
 
संघर्ष इसने हर पल किया है      
शिव ने तो सागर एक बार  मथा है .







Pradeep Gupta
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